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अंगूर ... बिल्कुल भी खट्टे नहीं थे

अंगूर ... बिल्कुल भी खट्टे नहीं थे

अंगूर बरसों पहले शेक्सपियर ने एक नाटक लिखी नाम था- ‘द कॉमेडी ऑफ एरर्स’ (The Comedy of Errors) .... न जाने इस पर कितनी फिल्में बनी और कितने इसके मंचन हुए .....हर दौर में इस पर या इससे मिलती जुलती फिल्में बनाने की कोशिशें होती रही दरअसल जोड़ी में कामेडी को करना और उसे एक उंचे मकाम तक पहुंचाना आसान नही होता .... 80-90 के दशक मे कादर खान-जानी लीवर की जोड़ी को लेकर भी ऐसे ही प्रयास किए गए मगर अंगूर सभी को याद होगा ......शायद ही कोई हो जो उस दौर में फिल्म देखे और इसे मिस कर जाए .....ये फ़िल्म भी शेक्सपियर के इसी नाटक से प्रेरित रही थी । गुलजार की इस बेमिसाल रचना हमें आज भी गुददुदाती है ....... आज सिनमेची इसी पर बात करना चाहता है ।

गुलजार के डायरेक्शन में बनने वाली इस फ़िल्म‘अंगूर’ की रिलीज डेट थी 5 मार्च 1982 .......संजीव कुमार और देवेन वर्मा की जोड़ी में मौसमी चटर्जी ने स्त्री पात्र को जीवंत कर दिया था । उस दौर में गंभीर अभिनय के लिए जाने जाने वाले संजीव कुमार यानी हरिभाई ने दर्शकों को खूब हंसाया , दीप्ति नवल औरअरुणा ईरानी  भी इस फिल्म का हिस्सा थे । गुलजार की  जिन बेहतरीन फिल्मों का जिक्र होता है उनमें इस कल्ट फिल्म को भी रखा जाता है । स्वस्थ कॉमेडी है, जिसे बच्चे और बड़े एक साथ देख सकते हैं उसकी बेहतरीन मिसाल है यह फिल्म । आगे बात करेंगे फिल्म के कहानी की ......

 

इस फ़िल्म की कहानी में दो जुड़वा बच्चे हैं  ......हमशक्ल हैं...... जन्म के समय ही बिछड़ जाते हैं........ इनकी मुलाकात  फिर से जवानी में होती है.........आम कहानी की तरह इनमें से एक बड़ा होकर जहां ईमानदार और सच्चा इंसान बनता है तो वहीं दूसरा चोर-उचक्का बन जाता है ........... इन दोनों के हमशकल होने की  वजह से आपसी कंफ्यूजन बड़े सहज से लगते हैं , जो इतना मज़ेदार है कि दर्शक हंसते-हंसते लोटपोट होने लगते हैं

 

'अंगूर" संजीव कुमार और गुलजार की युति की बेहतरीन कृतियो में से  एक मानी जाती है। इस फ़िल्म के लिए संजीव कुमार को बेस्ट एक्टर का नॉमिनेशन मिला था........संजीव कुमार के साथ-साथ देवेन वर्मा की अदाकारी भी लोगों को इतनी पसंद आई थी कि उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट कॉमेडी एक्टर का अवॉर्ड मिला...... देवेन वर्मा ने फ़िल्म में नौकर का किरदार निभाया जिसका नाम था 'बहादुर' ..........कुछ दृश्यों में  देवेन वर्मा, संजीव कुमार पर भारी पड़ते नजर आए थे। उनकी कॉमेडी की टाइमिंग जबरदस्त थी .......

 

फ़िल्म 'अंगूर’ का लाभ भी देवेन वर्मा को मिला इस फिल्म के बाद देवेन वर्मा के करियर में जबरदस्त उछाल आया था। डबल रोल में देवेन ने एक ऐसे नौकर का किरदार निभाया था जो मालिक को भगवान मानता है और उसकी कही हर बात मानता है। देवेन वर्मा की शकल ही मासूम सी थी इसलिए 'बहादुर' बने देवेन जब जब पर्दे पर आते हैं, तो उनकी मासूमियत दर्शकों को हंसने पे मजबूर कर देती है....... संजीव कुमार और देवेन वर्मा जैसी जुगलबंदी में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन कितना ज्यादा असर छोड़ रहा है ........80-90 के दशक में जब कादरखान और जानी लीवर का जोड़ा आया तब भवसे भी यही उम्मीद बांधी गई थी मगर तब तक कामेडी का दौर अपने निचले स्तर पर पहुंच चुका था ..... मगर फिर भी जोड़ी में कामेड़ी अपने आप में लाजवाब होती है , बशर्ते निभाने वाले कलाकारों और निर्देशक का चयन सही हो ।

  

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